बिना जांच और बिना किसी ठोस आधार के SC/ST कानून नहीं लगाया जाएगा : सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court ने कहा अगर कोई दलित वर्ग या अनुसूचित जाति के ऊपर कोई अपराध होता है तो मामले की पूरी जांच करने के बाद ही SC/ST एक्ट की धारा 3 (2) (5) लगाई जाए।


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प्रतिकात्मक छवि | सुप्रीम कोर्ट (फ़ाइल फोटो)

नई दिल्ली। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने शुक्रवार को SC/ST एक्ट को लेकर एक बेहद महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि, अब किसी दलित वर्ग या अनुसूचित वर्ग के व्यक्ति के ऊपर अत्याचार होता है तो बिना जांच और बिना किसी ठोस आधार के SC/ST कानून नहीं लगया जाएगा। SC/ST कानून तभी लगाया जाएगा जब यह साबित हो जाए कि दलित वर्ग या अनुसूचित वर्ग होने की वजह से ही अपराध हुआ है। 

SC (Supreme Court) ने कहा अगर कोई दलित वर्ग या अनुसूचित जाति के ऊपर कोई अपराध होता है तो मामले की पूरी जांच करने के बाद ही SC/ST एक्ट की धारा 3 (2) (5) लगाया जाए। इससे पहले अगर कोई दलित वर्ग या अनुसचित जाति के ऊपर दुराचार होता था तो खुद ब खुद SC/ST एक्ट लागू हो जाता था।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बेहद इसलिये हो जाता क्योंकि अभी तक बहुत ऐसे लोग बेबुनियाद आरोपों के कारण  SC/ST एक्ट के वजह से अभी भी सजा काट रहे है। SC/ST एक्ट को दलितों और अनुसचित जाति के लोगों द्वारा अपपर जाति के ऊपर अपने निजी बदले के वजह से भी इस्तेमाल किया गया है। अब उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से इस कानून का दुस्र्पयोग नहीं होगा।

क्या है सम्पूर्ण मामला ?

दरअसल मामला आंध्र प्रदेश का है जहां एक युवक ने 2011 में जन्म से अंधी लड़की के साथ दुष्कर्म किया था। उसके खिलाफ IPC की धारा 376 (1) और SC/ST एक्ट(अत्याचार निवारण)1989 की धारा 3 (2) (5) के तहत मुकदमा चला। मामले में राज्य पुलिस ने बलात्कार के साथ-साथ SC/ST एक्ट की धारा 3 (2) (5) भी लगा दिया था। राज्य पुलिस ने इस मामले पर  बिना जांच किए ही SC/ST एक्ट लगा दिया था। उसके बाद आरोपी व्यक्ति को साल 2013 में ट्रायल कोर्ट ने धारा 376 (1) IPC और SC/ST एक्ट की धारा 3 (2) (5) के तहत दोषी करार दिया गया था। उसे धारा 376 (1) IPC के तहत आजीवन कारावास और 1,000 / – रुपये के जुर्माने की सजा दी गई। अगस्त, 2019 में, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने उसकी सजा पर पुष्टि करते हुए उसकी अपील को खारिज कर दिया था। जिसके चलते उससे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

लाइव लॉ के रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा है कि, यह मामला बेहद गंभीर है परंतु जब तक पूर्ण रूप से स्थापित नहीं हो जाता कि यह अपराध लड़की के दलित होने की वजह से हुआ है तब तक SC/ST एक्ट की धारा 3 (2) (5) को नहीं लगा सकते है। कोर्ट ने आगे कहा कि, यह साबित करना ज़रूरी होगा कि यह रेप इसलिए हुआ है क्योंकि लड़की अनुसचित जाति या दलित वर्ग से है। कोर्ट ने यह भी कहा कि, अगर पीड़ित दलित या SC/ST है तो आरोपी के ऊपर सिर्फ इसी वजह से SC/ST एक्ट की धारा नहीं लगाया जा सकता है।

*नोट: साभार – LiveLaw.in एवं TFIPost.in के सहयोग से, आर्टिकल का अंग्रेज़ी संस्करण यहां पढ़े 

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