दमोह के हटा नाका स्थित मुक्तिधाम में बनाया जाएगा ज़िले का पहला विद्युत शवदाह गृह!
दमोह। पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने के उद्देश्य से विद्युत शवदाह गृह का निर्माण नगरपालिका दमोह द्वारा हटा नाका स्थित मुक्तिधाम में किया जाएगा। मुुख्य नगर पालिका अधिकारी निशीकांत शुक्ला ने बताया कि इसका टेंडर जारी हो गया है, 87.49 लाख रुपए की लागत से इसका निर्माण कार्य किया जाएगा।
यह शवदाह गृह 6 माह में बनकर पूर्ण हो जायेगा। दाह संस्कार के लिए पेड़ों की कटाई रोकने एवं पर्यावरण संरक्षण हेतु यह एक नवीन पहल होगी। सामान्य तौर पर जहां एक दाह संस्कार में बड़ी तादाद में लकड़ियोन का उयोग किया जाता हैं वहीं विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करा कर अनगिनित पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता है। पेड़ पर्यावरण संरक्षण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, इन्हें सुरक्षित रखने के लिए विद्युत शवदाह का विकल्प अपनाना होगा।
विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार के दौरान हवा प्रदूषित होने का खतरा काफी कम होता है। उन्होंने बताया विद्युत शवदाह गृह स्क्रबर टेक्नोलॉजी से लैस होता है, जो अंतिम संस्कार के दौरान निकलने वाली खतरनाक गैस और बॉडी के बने पार्टिकल को सोख लेता है। विद्युत शवदाह गृह तुलनात्मक रूप से काफी कम खर्चीला होता है।
क्या है विद्युत दाह संस्कार की प्राणली?
पारंपरिक चिता में लगभग 500-600 किलोग्राम जलाऊ लकड़ी, तीन लीटर मिट्टी का तेल और कुछ देसी घी पसंद करते हैं, और प्रति शव 300-400 गोबर के उपले की आवश्यकता होती है। कुल लागत लगभग रु कुल 2,000 – 3,000 इसके बाद करीब 24 घंटे के बाद ही पार्थिव शव की खारी या अस्थियां प्राप्त कर सकते है।
पारंपरिक दाह संस्कार से अलग विद्युत दाह संस्कार तुलनात्मक रूप से कम खर्चीला है। अंतिम संस्कार के कुछ घंटों के भीतर परिजन या रिश्तेदार शव की खारी या अस्थियां ले जा सकते हैं। विद्युत दाह संस्कार में लकड़ी नहीं जलाई जाती है और कोई गैस उत्सर्जन नहीं होता है। निस्संदेह यह दाह संस्कार का एक अपरंपरागत तरीका है और तो और यह लकड़ी, मिट्टी के तेल आदि जैसे संसाधनों को बचाने में मदद करता है। यह अंतिम संस्कार के लिए सबसे किफायती विकल्प है।