दमोह उपचुनावः ब्राह्मण वोटरों को लुभाने के बाद अब दलित वोटबैंक पर है बीजेपी और कांग्रेस की नजर!
दमोह। दमोह उपचुनाव के लिए अब केवल 11 दिन ही शेष बचे है, प्रत्याशियों के नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद से ही भाजपा और कांग्रेस जातिगत समीकरणों को साधने में लगें हुऐ हैं, बुंदेलखंड अंचल की सीट होने के कारण दमोह विधानसभा कि इस सीट पर जातिगत समीकरण (cast fecter) बेहद ही अहम भूमिका निभाता हैं, ऐसे में दोनों पार्टियां जातिगत समीकरणों को साधने मे जुटी हुई हैं।
ब्राह्मण के बाद अब दलित वोटबैंक पर नजर:
ब्राह्मण वोटरों को लुभाने के बाद अब भाजपा और कांग्रेस दलित वोटबैंक को साधने में जुटी हैं। इसबार सपा यानि समाजवादी पार्टी, बसपा बहुजन समाज पार्टी एवं गौंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रत्याशी मैदान में न होने पर कांग्रेस और बीजेपी को राहत की सांस मिली हैं, कांग्रेस पहले ही दलित वोटबैंक पर सेंध लगाय बैठी है, तो वहीं भाजपा भी दलित बस्तियों में पहुचकर इन्हें लुभाने की कोशिश कर रही है।
बीजेपी ने दलित समाज में अपनी पैठ बनाने के लिए पार्टी के बड़े दलित नेताओं को मैदान में उतारा है, वही कांग्रेस ने दो दिन पहले ही दलित समाज के नेता के साथ दलित इलाकों में जनसंपर्क किया है। दलित समाज को मनाने के लिए कांग्रेस ने पूर्व मंत्री सागर के सुरेंद्र चौधरी और पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष तेजीराम रोहित को जिम्मेदारी सौंपी है और मतदाताओं को मनाने के लिए मैदान में उतारा है।
वहीं बीजेपी ने कैबिनेट मंत्री प्रभुराम चौधरी और नरयावली विधायक प्रदीप लारिया को जिम्मेदारी दी है, एक दिन पहले बीजेपी कार्यालय में एक बैठक हुई थी उसके बाद दलित बस्ती में जाकर खाना भी खाया था। बीजेपी के बड़े नेता अब शहर के अंदर बड़े वोटबैंक वाले समाजों पर जोर दे रही हैं, जिस समाज में ज्यादा वोट है, उस समाज के नेता और मंत्री को बुलाया जा रहा है।
आपको बता दें कि दमोह विधानसभा (Damoh Assembly) क्षेत्र 55 में दलित समाज के कुल 45 हजार वोटर है अगर यह वोट पार्टी प्रत्याशियों को मिलता है तो पार्टी By-electionको जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाता है। ऐसा जानकारों का मानना है कि जिस तरफ दलित समाज (Dalits Community) का वोट होता है, उस प्रत्याशी का पलड़ा भारी हो जाता है। विधानसभा चुनाव 2018 में बहुजन समाज पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने अपना प्रत्याशी मैदान में उतारा था। हांलाकि दोनों पार्टी ज्यादा वोट तो नहीं खींच पाईं, लेकिन जयंत मलैया को कहीं न कहीं इसका बड़ा नुकसान हो गया था और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
सबसे ज्यादा प्रभावित बसपा ने किया था। बसपा ने तकरीबन 5281 वोट अपने पक्ष में हासिल किए थे। इसी तरह गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने भी कुछ नुकसान पहुंचाया था। मगर इस बार ऐसा नहीं है। तीनों पार्टियों ने बीजेपी और कांग्रेस के लिए खुला मैदान छोड़ दिया है और यह वोट बैंक दोनों पार्टियों के लिए एक तरह से बड़ा अवसर बनकर सामने आया है।
उपचुनाव (By-Election) जातिवाद समीकरण मुद्दा बन चुका हैं जहां लोधी, ब्राह्मण, जैन, मुस्लिम, यादव, कुर्मी, कांछी सहित अन्य समाजों पर अब तक दोनों पार्टी जोर लगा रहीं थीं, लेकिन इन समाजों में पेंच फंसने के कारण अब बीजेपी और कांग्रेस दलित समाज के वोट पर दांव लगा रही है।