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डिजिटल डेस्क। कोरोना की दूसरी लहर के बीच रेमडेसिविर इंजेक्शन की मांग काफी ज्यादा बढ़ गई है। बाजार में भी इसकी भारी कमी है। कोरोना संक्रमण बढ़ने के साथ ही जैसे-जैसे मरीजों की स्थिति बिगड़ रही है, वैसे ही रेमडेसिविर की मांग भी बढ़ती जा रही है। अब आलम यह हो चुका कि प्रशासन को अपनी मौजूदगी में दवा की थोक दुकानों से रेमडेसिविर उपलब्ध करानी पड़ रही है।
कई लोग ऐसे हैं जो होम आइसोलेशन में होने के बाद भी रेमडेसिविर की तलाश में इधर उधर भटक रहे हैं। वह घर पर ही इस इंजेक्शन को लगवाना चाहते हैं। डाक्टरों का कहना है कि रेमडेसिविर के बहुत ज्यादा साइड इफेक्ट भी हैं।
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डेक्सामेथासोन इंजेक्शन (फोटो साभार: इकोनॉमिक्स टाइम्स) |
मेडीकल एक्सपर्ट्स बताते हैं कि कोरोना वायरस (Coronavirus) की उम्र नौ दिन होती है। वायरस हमारे शरीर में आने के साथ ही अपनी संख्या बढ़ाने लगता है। इसकी संख्या करोड़ों में हो जाती है। यदि समय पर इलाज न मिले तो शरीर में नौ दिन में ही वायरस इतना नुकसान पहुंचा देता है कि फेफड़े में संक्रमण और भी अधिक बढ़ जाता है।
खून के साथ ही शरीर के कई अंगों पर इसका विपरीत असर पड़ता है। इससे लगातार आक्सीजन कि मात्रा कम होने लगती है। इस कमी को डेक्सामेथासोन (Dexamethasone) पूरा करता है। रेमडेसिविर वायरस की संख्या बढ़ने की गति को कम कर देता है, लेकिन यह जीवनरक्षक नहीं है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक दो हजार से अधिक ऐसे कोरोना रोगी, जिनका ऑक्सीजन लेवल 90% से भी कम था। डेक्सामेथासोन देने के बाद 28 दिन के बाद ऐसे लोगों की मृत्यु दर में काफी कमी देखी गई थी। इन्हें वेंटिलेटर की जरुरत भी नहीं पड़ी। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में हाल ही प्रकाशित शोध में यह सामने आया है कि डेक्सामेथासोन सांस संबंधी बीमारियों के उपचार में कारगर है।
डेक्सामेथासोन की माँग क्यों?
ब्रिटेन के विशेषज्ञों ने भी दावा किया है कि दुनिया भर में बेहद सस्ती और आसानी से मिलने वाली दवा डेक्सामेथासोन कोरोना वायरस से संक्रमित एवं गंभीर रूप से बीमार मरीज़ों की जान बचाने में मदद कर सकती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर इस दवा का इस्तेमाल ब्रिटेन में संक्रमण के शुरुआती दौर से ही किया जाता तो क़रीब पाँच हज़ार लोगों की जान बचाई जा सकती थी।
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की एक टीम ने अस्पतालों में भर्ती 2000 मरीज़ों को यह दवा दी और उसके बाद इसका तुलनात्मक अध्ययन उन 4000 हज़ार मरीज़ों से किया, जिन्हें दवा नहीं दी गई थी। जो मरीज़ वेंटिलेटर पर थे, उनमें इस दवा के असर से 40 फ़ीसदी से लेकर 28 फ़ीसदी तक मरने का जोखिम कम हो गया और जिन्हें ऑक्सीजन की ज़रूरत थी उनमें ये जोख़िम 25 फ़ीसदी से 20 फ़ीसदी तक कम हो गया। शोधकर्ताओं के मुताबिक़ कोरोना वायरस इनफ़ेक्शन (Coronavirus Infection) शरीर में इनफ़्लेमेशन (सूजन) बढ़ाने की कोशिश करता है. जबकि डेक्सामेथासोन इस प्रक्रिया को धीमी करने में असरदार पाई गई।
भारत और डेक्सामेथासोन का रिश्ता:
भारत में डेक्सामेथासोन का उपयोग (Dexamethasone uses) सन 1960 के दशक से जारी है और जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गई, इसका चलन भी काफ़ी बढ़ा है। एक अनुमान मुताबिक़ भारत में डेक्सामेथासोन की सालाना कुल बिक्री 100 करोड़ रुपए से भी ज़्यादा है और जानकार इस बिक्री को ख़ास बड़ा इसलिए बताते हैं क्योंकि दवाई बेहद सस्ती है।
भारत सरकार के ‘ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर’ पॉलिसी (आव्यशक दवाओं के दामों को नियंत्रित करने की नीति) के तहत इस दवा की गोलियों के पत्ते और इंजेक्शन पाँच रुपए से लेकर 10 रुपए के भीतर ख़रीदे जा सकते हैं. ड्रग रिसर्च और मैन्युफ़ैक्चरिंग विशेषज्ञ डॉक्टर अनुराग हितकारी बताते हैं, “डेक्सामेथासोन सोडियम फ़ॉस्फ़ेट एक स्टेरॉयड है जो भारत में बहुत कॉमन है।
उन्होंने कहा, “छोटे-बड़े मिलाकर भारत में इस मूल दवा के आठ उत्पादक हैं. जबकि इस दवा के अलग-अलग फ़ॉर्म्युलेशन (टैबलेट और इंजेक्शन वग़ैरह) बनाने वाली कंपनियाँ 15 से अधिक हैं. साथ ही इस दवा के लिए ज़रूरी सॉल्ट्स विदेशों से आयात भी किए जाते हैं.”
क्योंकि तमाम स्टेरॉयड में से एक ये भी है इसलिए भारत में डेक्सामेथासोन दवा के फ़ॉर्म्युलेशन का इस्तेमाल ब्लड कैंसर या कुछ अन्य कैंसर मरीज़ों के इलाज के दौरान भी होता आया है।
डेक्सामेथोंन के फ़ायदे:
ऑक्सीजन लेवल सुधारने में सक्षम है डेक्सामेथासोन।
डेक्सामेथासोन इंजेक्शन (Dexamethasone Injection) 10 रुपए में, जबकि इसकी टेबलेट महज दो रुपए में उपलब्ध है।
रेमडेसिविर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मान्यता नहीं दी है।