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दमोह। भारत के पत्रकारिता इतिहास में पहला ‘बुंदेली’ बोली का समाचारपत्र हाल ही में लॉन्च किया गया है। जिसका नाम है ‘बुंदेली बौछार’ (Bundeli Bauchhar) दरअसल भारत में लगभग विभिन्न 18 भाषाओं में समाचार पत्र प्रकाशित किए जाते है। जिनमें हिंदी,अंग्रेजी,गुजराती, मराठी,बांग्ला जैसी प्रमुख भाषाएं हैं। पिछले अनेकों वर्षो से आवाज उठती रही है की हिंदी के साथ – साथ प्रादेशिक और आंचलिक भाषाओं का समावेश होना चाहिए। आवाज़ उठती रही और शांत हो गई परंतु धरा पर उतारने की हिम्मत कोई न कर सका।
पिछले कुछ वर्षो में बुंदेली बोली को भारत समेत अनेक देशों में पहचान दिलाने वाले सचिन जैन जो की ‘बुन्देली बौछार’ नाम से अपना सोशल मीडिया पर समाचार चैनल चलाते है, हाल ही में इनके द्वारा समाचार पत्र जगत में एक अनूठा प्रयास किया गया है। जिसकी बुंदेलखंड क्षेत्र समेत प्रदेश भर में बहुत सराहना की जा रही है। दरअसल सचिन, ने ‘बुंदेली बौछार’ का साप्ताहिक समाचार पत्र (Weekly Newspaper) प्रकाशित कर बुंदेली बोली को एक विशेष स्थान देने का प्रयास किया है। सचिन लगातार बेबाकी से बुंदेलखंड समेत प्रदेश भर पर हो रही सामाजिक व राजनैतिक गतिविधियों पर अपने अनुखे बुंदेली अंदाज में अपनी राय रखते हैं।
बुंदेली समाचार पत्र की ख़बर मिलते हैं ही बुंदेली साहित्यकारों के चेहरे खिल उठे। बुंदेली के कुछ साहित्यकारों, इतिहासकारों, लेखकों, कवियों ने तो किताबों के पन्ने पलटना शुरू कर दिए हैं। उनका कहना है, हमारे बुंदेलखंड (Bundelkhand) के ऐसे कई शब्द हैं, जो लोगों की जुबान पर आसानी से चढ़ सकते हैं। इसके लिए भाई सचिन जैन द्वारा किए गए प्रयास सराहनीय है। बुन्देली के बारे में ख्यात कवि और साहित्यकार प्रो. सुरेश आचार्य बताते हैं, भर्रा (धांधली) शब्द बुंदेली से ही निकला है। जिसे भर्राशाही के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ डॉ. शरद सिंह बताती हैं, हिंदी कथा सम्राट प्रेमचंद ने अपनी दो कहानियां राजा हरदौल और रानी सारंध्रा बुंदेली कथानकों पर ही लिखी थीं, जिन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया।
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मुख्यमंत्री शिवराज (बाएं) बुंदेली बौछार संस्थापक सचिन जैन (दांए) |
बुन्देली समाचार पत्र (Bundeli News Paper) की लांचिंग पर संस्थापक सचिन जैन प्रदेश के प्रमुख राजनैतिक हस्तियों को समाचार पत्र की प्रति भेंट करते हुए लगातार देखें जा रहे है। बुंदेली भारत के एक विशेष क्षेत्र बुन्देलखण्ड में बोली जाती है। यह कहना बहुत कठिन है कि बुंदेली कितनी पुरानी बोली हैं लेकिन ठेठ बुंदेली के शब्द अनूठे हैं जो सादियों से आज तक प्रयोग में आ रहे हैं। प्राचीन काल में बुंदेली में शासकीय पत्र व्यवहार, संदेश, बीजक, राजपत्र, मैत्री संधियों के अभिलेख प्रचुर मात्रा में मिलते है। इतिहास में देखें तो बुंदेलखंड की पाटी पद्धति में सात स्वर तथा ४५ व्यंजन हैं। कातन्त्र व्याकरण ने संस्कृत के सरलीकरण प्रक्रिया में सहयोग दिया। बुंदेली पाटी की शुरुआत ओना मासी घ मौखिक पाठ से प्रारंभ हुई थी विदुर नीति के श्लोक विन्नायके तथा चाणक्य नीति च न्नायके के रूप में याद कराए जाते थे।
एक मीडिया रिपोर्ट के माने तो, पंजीकृत प्रकाशनों की संख्या 1,14,820 है। किसी भी भारतीय भाषा में पंजीकृत समाचार पत्र-पत्रिकाओं की सबसे अधिक संख्या हिंदी भाषा में है और यह संख्या 46,827 है, जबकि हिंदी के अलावा दूसरे नंबर पर आने वाली अंग्रेजी भाषा में प्रकाशनों की संख्या 14,365 है। इसके साथ अन्य भाषाएं भी समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रयोग की जाती है। परन्तु भारत की सबसे प्राचीन बोलियों में से एक बोली जाने वाली बुन्देली समाचार की दुनिया में अभी वंचित थी जिसकी पूर्ति बुन्देली बौछार के प्रधान सचिन जैन (Sachin Jain) ने पूरी की है।